
ट्रॉमा सेंटर में पदस्थ डेंटल डॉ. रचना सिंह पर गंभीर आरोप, जांच के बाद भी कार्रवाई शून्य..
सिंगरौली जिले का ट्रॉमा सेंटर, जहां हर दिन सैकड़ों मरीज इलाज की उम्मीद लेकर आते हैं, आजकल भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के गंभीर आरोपों की वजह से चर्चा में है। सरकारी दावों के अनुसार स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए योजनाएं चलाई जा रही हैं, अस्पतालों में मुफ्त दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। इस बार मामला सामने आया है जिला अस्पताल ट्रॉमा सेंटर में पदस्थ बांड पर कार्यरत डेंटल चिकित्सक डॉ. रचना सिंह का, जिन पर दो अलग-अलग मरीजों से कथित रूप से 25 हजार और 5 हजार रुपये की अवैध वसूली का आरोप है। यह मामला तब प्रकाश में आया जब वार्ड भ्रमण के दौरान मरीजों के परिजनों ने सिविल सर्जन से सीधी शिकायत की कि डॉक्टर ने क्लीनिक में सर्जरी के नाम पर मोटी रकम वसूली है।
क्या है पूरा मामला…?
जानकारी के अनुसार, सिंगरौली जिले के दो निवासी रामबृज केवट एवं लालजीत पंडो जिनके मुंह में गंभीर चोटें थीं, उनका इलाज जिला अस्पताल ट्रॉमा सेंटर में चल रहा था। मरीजों के परिजनों ने बताया कि डॉक्टर रचना सिंह ने उन्हें अपने निजी क्लिनिक पर बुलाया और वहां इलाज के नाम पर पहले 25 हजार और फिर 5 हजार रुपये की मांग की गई। दोनों मरीजों को बाहर की दवा दुकानों से महंगी दवाएं खरीदने को मजबूर किया गया, जिनके पर्चे पर डॉ. रचना सिंह का नाम लिखा हुआ था। सबसे गंभीर बात यह है कि डॉ. रचना सिंह बांड पर पदस्थ हैं, यानी उनकी डिग्री और डॉक्यूमेंट्स अभी तक संबंधित मेडिकल कॉलेज में ही सुरक्षित हैं। नियमों के अनुसार, जब तक बांड अवधि पूरी नहीं होती, वह निजी क्लिनिक नहीं चला सकतीं और न ही प्राइवेट प्रैक्टिस की अनुमति है। फिर भी उनके खिलाफ कार्रवाई तो दूर, जांच का निष्कर्ष भी अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
डॉ. रचना सिंह के अलावा, लेबर वार्ड में पदस्थ एक गायनकोलॉजिस्ट डॉ.यू .के सिंह पर भी 5 हजार रुपये की रिश्वत लेने का आरोप सामने आया है। मरीजों के परिजनों का कहना है कि प्रसव के नाम पर डॉक्टर ने पैसे की मांग की और बिना भुगतान के प्रसव में टालमटोल की जा रही थी। यह आरोप भी सिविल सर्जन डॉ. देवेंद्र सिंह तक पहुंचा, जिन्होंने जांच टीम गठित करने का दावा किया, लेकिन अब तक ना रिपोर्ट आई और ना ही कोई कार्रवाई।
सवालों के घेरे में सिविल सर्जन की भूमिका…
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब परिजनों ने प्रमाणों सहित शिकायतें दी हैं, तो अब तक जांच में देरी क्यों हो रही है? शिकायतकर्ता यह भी आरोप लगा रहे हैं कि सिविल सर्जन खुद रिश्वतखोर डॉक्टरों को बचाने की कोशिश में लगे हैं। एक ओर वह खुद जांच के आदेश देते हैं, दूसरी ओर उन्हीं की निगरानी में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। जिला अस्पताल के कई अन्य डॉक्टरों पर भी आरोप हैं कि वह मरीजों को अपने निजी क्लिनिक में रेफर कर इलाज के नाम पर मोटी रकम वसूलते हैं। वहीं, अस्पताल में मिलने वाली सरकारी दवाओं की जगह उन्हें निजी दुकानों से महंगी दवाएं खरीदने को कहा जाता है। इससे सरकारी योजनाओं की साख पर बट्टा लग रहा है और गरीब मरीजों की जेबें खाली हो रही हैं।
सरकार के दावे कुछ और जमीनी हकीकत कुछ और…
मध्यप्रदेश सरकार का दावा है कि स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए अस्पतालों में जरूरी संसाधन, दवाएं और डॉक्टर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। लेकिन जब अस्पताल के भीतर ही रिश्वत का खेल खुलेआम चल रहा हो, और डॉक्टर नियमों को ताक पर रखकर निजी प्रैक्टिस कर रहे हों, तो यह सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है।
मरीज, संगठन, समाज सेवीयों में मामले को लेकर जनआक्रोश बढ़ता जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग, जिला प्रशासन और शासन से यह मांग की जा रही है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए और दोषियों पर तत्काल सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक कर जनता को यह भरोसा दिलाया जाए कि भ्रष्टाचार को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
जब डॉक्टर ही मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाएं, जब अस्पताल में इलाज से ज्यादा कमाई प्राथमिकता बन जाए, और जब जांचें केवल कागजों में सिमट जाएं — तो यह न सिर्फ चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल है, बल्कि समाज की नींव पर भी करारा तमाचा है।
इन सभी मामलों को लेकर जब सिविल सर्जन डॉक्टर देवेंद्र सिंह से बात की गई तो उनके द्वारा कहा गया कि हमने तो जांच कर ऊपर सरकार को दे दी है अब सरकार जाने या भगवान हमारे पास तो अभी फीडबैक नही आया है..