यातायात व्यवस्थाओं को सुचारू बनाए रखने में रोड़ा बन रहे ऑटो चालक, प्रभारी अनजान
जान हथेली पर लेकर ऑटो से यात्रा करते हैं लोग, ठूंस-ठूंस कर भरी जाती है सवारी
सिंगरौली जिले में यातायात व्यवस्थाओं को दुरुस्त रखने और सड़क सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन ने यातायात थाना प्रभारी को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। जिम्मेदारी इतनी अहम है कि इससे सीधे तौर पर आम जनता की सुरक्षा, दुर्घटनाओं पर अंकुश और परिवहन की सहजता जुड़ी हुई है। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट नजर आ रही है। हालांकि हाल ही में सिंगरौली यातायात थाना ने प्रदेश स्तर पर द्वितीय स्थान और विंध्य अंचल में प्रथम स्थान हासिल किया है, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों की पोल खोल रही है। स्थिति यह है कि शहर और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में यातायात व्यवस्था पूरी तरह से अव्यवस्थित दिखाई देती है। जगह-जगह जाम की स्थिति, ओवरलोड वाहनों का बेखौफ सड़कों पर दौड़ना और ऑटो चालकों द्वारा क्षमता से कई गुना यात्रियों को लादना, यह सभी दृश्य आम बात हो गए हैं।
धृतराष्ट्र बनी यातायात व्यवस्था
यातायात थाना प्रभारी को व्यवस्था का प्रहरी होना चाहिए, लेकिन मौजूदा हालात बताते हैं कि वे आंख मूंदकर “धृतराष्ट्र” की भूमिका निभा रहे हैं। सड़कों पर बेधड़क चल रहे ऑटो और भारी वाहनों की लापरवाही से आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इन घटनाओं के पीछे मुख्य वजह यातायात विभाग की लचर कार्यप्रणाली है, जो केवल कागजों पर सक्रिय दिखाई देती है।
वसूली पर ज्यादा, व्यवस्था पर कम ध्यान
जनता में यह चर्चा आम है कि यातायात थाना प्रभारी और उनकी टीम सख्ती करने से ज्यादा वसूली में सक्रिय नजर आती है। जगह-जगह चालानी कार्रवाई और चेकिंग तो खूब होती है, लेकिन यह सब वास्तविक सुधार के बजाय औपचारिकता भर प्रतीत होता है। आम नागरिक सवाल उठाते हैं कि यदि कार्रवाई हो रही है तो फिर हालात क्यों नहीं सुधर रहे? इसका सीधा अर्थ यही निकलता है कि वसूली प्राथमिकता है, व्यवस्था गौण।
दुर्घटनाओं को दे रहे आमंत्रण
शहर और उसके आसपास ऑटो चालकों द्वारा ओवरलोडिंग, बसों व मालवाहक ट्रकों का बेतरतीब संचालन और गलत दिशा से आने-जाने वाले वाहनों की लापरवाही लगातार जानलेवा साबित हो रही है। कई बार मासूम बच्चे, बुजुर्ग और आम राहगीर इन हालातों की चपेट में आ जाते हैं। हादसों की बढ़ती संख्या प्रशासन की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा करती है।
कागजों में चमक, जमीन पर धुंध
भले ही विभाग कागजों पर उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटता रहे, लेकिन वास्तविकता यह है कि जनता रोजाना परेशानियों का सामना कर रही है। ट्रैफिक सिग्नल ज्यादातर समय बंद रहते हैं, प्रमुख चौराहों पर कोई प्रभावी निगरानी नहीं है, और यातायात कर्मियों की उपस्थिति केवल चुनिंदा जगहों पर “वसूली प्वाइंट” तक ही सीमित रह जाती है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई सिंगरौली की यातायात व्यवस्था इसी तरह कागजों तक ही सीमित रहेगी? क्या थाना प्रभारी का कर्तव्य केवल रैंकिंग हासिल करना और औपचारिक कार्रवाई करना भर रह गया है? या फिर वास्तव में यातायात को सुचारू बनाने और सड़क सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे? जनता का धैर्य अब जवाब देने लगा है। यदि जल्द ही ठोस सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो अव्यवस्थित यातायात और दुर्घटनाओं का यह सिलसिला और भयावह रूप ले सकता है।
