
बिना पर्यावरण स्वीकृति के बना मेडिकल कॉलेज, धूमधाम से हुआ लोकार्पण, जिम्मेदार मौन
सिंगरौली। सिंगरौली जिले को आखिरकार लंबे इंतजार के बाद अपना मेडिकल कॉलेज मिल गया। रविवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने जबलपुर स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस कल्चरल इन्फार्मेशन सेंटर से वर्चुअली सिंगरौली मेडिकल कॉलेज का लोकार्पण किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और उपमुख्यमंत्री सह स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री राजेंद्र शुक्ल मौजूद रहे। इसी के साथ श्योपुर सहित अन्य जिलों में भी चिकित्सा महाविद्यालयों का शुभारंभ हुआ। मेडिकल कॉलेज को फिलहाल 100 सीटों पर प्रवेश की मान्यता नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) से मिल गई है। लेकिन लोकार्पण के इस जश्न के बीच बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि बिना पर्यावरणीय स्वीकृति (एनओसी) के मेडिकल कॉलेज का निर्माण कैसे और किसकी शह पर पूरा हो गया?
नियम-कानून को ताक पर रखकर हुआ निर्माण
प्राप्त जानकारी के अनुसार, मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य पिछले डेढ़ साल से जारी था। करोड़ों रुपये के इस प्रोजेक्ट को लेकर न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PCB) से स्थापना की स्वीकृति (कंसेंट टू एस्टैब्लिश) ली गई और न ही पर्यावरणीय नियमों का पालन किया गया। जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 की धारा 25/26 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981 की धारा 21 के तहत किसी भी बड़े निर्माण प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले PCB से अनुमति लेना अनिवार्य है। लेकिन सिंगरौली मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने इन नियमों की अनदेखी की और 80 प्रतिशत से अधिक निर्माण बिना अनुमति के पूरा कर लिया। प्रदूषण बोर्ड मुख्यालय भोपाल ने इस संबंध में कई बार पत्राचार किया, लेकिन प्रबंधन की ओर से लापरवाही बरती जाती रही। यहां तक कि दर्जनों बार जिला प्रशासन, कलेक्टर और अन्य अधिकारियों द्वारा साइट निरीक्षण किया गया, फिर भी नियम विरुद्ध निर्माण पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई गई।
242 करोड़ की लागत से बना मेडिकल कॉलेज
मिली जानकारी के अनुसार, मेडिकल कॉलेज के शैक्षणिक ब्लॉक, प्रशासनिक भवन, लड़के-लड़कियों के हॉस्टल, मेस, डीन और सुपरिटेंडेंट आवास सहित अन्य संरचनाओं पर 242 करोड़ रुपये (जीएसटी छोड़कर) की लागत आई है। हालांकि अभी रेजिडेंट डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ के लिए आवासीय भवनों का निर्माण अधूरा है। वहीं मेडिकल कॉलेज अस्पताल के निर्माण पर 144 करोड़ रुपये की लागत अनुमानित है। इस अस्पताल में 605 बेड की सुविधा होगी। इसके अतिरिक्त भविष्य में पोस्ट ग्रेजुएशन (पीजी) शिक्षा को शुरू करने के लिए नई जमीन की तलाश और अधिग्रहण की कवायद भी चल रही है।
पर्यावरणीय कानून की उड़ाई गयी धज्जियां
मेडिकल कॉलेज का शुभारंभ निस्संदेह सिंगरौली जिले के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। स्वास्थ्य सेवाओं और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में यह जिले को नई पहचान दिलाएगा। यहां से हर साल 100 डॉक्टर तैयार होंगे, जिससे न केवल जिले बल्कि पूरे विंध्य क्षेत्र को फायदा मिलेगा। लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठता है कि जब निर्माण नियमों और पर्यावरणीय कानूनों की धज्जियां उड़ाकर किया गया है, तो इसका जवाबदेह कौन होगा? प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की आपत्तियों को नजरअंदाज कर कॉलेज का निर्माण और अब लोकार्पण प्रशासनिक शिथिलता और राजनीतिक दबाव की ओर इशारा करता है सिंगरौली मेडिकल कॉलेज का लोकार्पण जिले के लिए सौगात है, लेकिन इसकी नींव पर उठते सवाल गंभीर हैं। यदि पर्यावरणीय नियमों को ताक पर रखकर सरकारी स्तर पर ही कार्य होंगे तो आम नागरिकों से इनके पालन की अपेक्षा करना बेमानी है। अब देखना होगा कि इस पूरे मामले में शासन-प्रशासन किस तरह की कार्रवाई करता है या फिर यह मामला भी समय के साथ दब जाएगा।