14,620 किमी उड़ान भरकर संगम पहुंचे प्रवासी पक्षियों ने बढ़ाई रौनक; नवंबर से फरवरी तक संगम तट बनता है अस्थायी बसेरा, पर्यटकों और नाविकों की भी चमकी किस्मत
ब्यूरो रवि शंकर गुप्ता
तीर्थराज प्रयागराज,- गुलाबी ठंड की दस्तक के साथ ही संगम नगरी प्रयागराज का आसमान एक बार फिर विदेशी परिंदों की उड़ान से रंगीन हो गया है। रूस के साइबेरिया से करीब 14,620 किलोमीटर का लंबा सफर तय कर आए ये प्रवासी पक्षी अब संगम की शोभा बढ़ा रहे हैं। सूर्योदय की सुनहरी किरणों के बीच जल पर तैरते सफेद परिंदों का दृश्य न केवल आकर्षक है, बल्कि मानो प्रकृति का उत्सव-सा प्रतीत होता है।

हर वर्ष नवंबर से फरवरी के बीच संगम तट इन विदेशी मेहमानों का अस्थायी घर बन जाता है। जैसे ही मार्च का महीना आता है, ये परिंदे पुनः अपने मूल निवास — साइबेरिया और उत्तरी क्षेत्रों की ओर लौट जाते हैं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार, जब उत्तर के देशों में बर्फ जमने लगती है और भोजन की कमी होती है, तब ये परिंदे अनुकूल मौसम, भोजन और सुरक्षित वातावरण की तलाश में भारत का रुख करते हैं।
संगम तट पर प्रवासी पक्षियों का जमघट पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इन्हें देखने और दाना खिलाने वालों की भीड़ से नाविकों, फोटोग्राफरों और स्थानीय व्यापारियों की चांदी हो गई है। आसमान में उड़ते और जल में तैरते इन परिंदों की कलरव ध्वनि अब प्रयागराज की पहचान बन चुकी है।
पर्यावरण और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रयागराज में करीब 132 करोड़ रुपये की लागत से राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य का निर्माण किया जा रहा है। वहीं, कौशांबी की अलवारा झील भी इन प्रवासी मेहमानों की नई पसंद बन गई है। झील के सौंदर्यीकरण और संरक्षण के लिए पर्यटन विभाग विशेष परियोजना पर काम कर रहा है।
इन परिंदों की मौजूदगी यह संदेश देती है कि सीमाएं इंसानों के लिए होती हैं, परिंदों के लिए नहीं। संगम की ठंडी हवाओं और नीले आकाश में उड़ते ये परिंदे न केवल प्रयागराज की प्राकृतिक सुंदरता को निखारते हैं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और सहअस्तित्व की जीवंत मिसाल भी बन जाते हैं।
