
मऊगंज जनसुनवाई बनी फरेब का अड्डा – कलेक्टर गायब, अफसरों की बेरुख़ी से जनता नाराज
कलेक्टर संजय जैन जनसुनवाई से रहे नदारद, अपर कलेक्टर ने भी समस्याओं को किया नज़रअंदाज़ – फाइलों में दबकर रह जाती हैं शिकायतें, ग्रामीण बोले “जनसुनवाई नहीं, जन-ठगाई”
संवाददाता – मुस्ताक अहमद
रीवा (मऊगंज) :- मऊगंज नवीन जिले में हर मंगलवार को कलेक्टर सभागार में जनसुनवाई का आयोजन किया जाता है। यह व्यवस्था जनता की समस्याओं का सीधा समाधान देने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन अब यह “उम्मीदों की चौपाल” से ज्यादा “फरेब का अड्डा” बनकर रह गई है।
गाँव-गाँव से लोग अपने कष्ट लेकर सुबह से ही पहुँचते हैं। कोई जमीन विवाद की सुनवाई चाहता है, तो कोई राशन, पेंशन, रोजगार और बिजली जैसी बुनियादी दिक़्क़तें लेकर आता है। लेकिन घंटों लाइन में खड़े होने और आवेदन देने के बाद भी उन्हें सिर्फ़ निराशा हाथ लगती है।
कलेक्टर नदारद, अपर कलेक्टर उदासीन
इस हफ्ते का नज़ारा तो और भी चौंकाने वाला रहा। जनसुनवाई में जिला कलेक्टर संजय जैन पूरी तरह नदारद रहे। उनकी गैरहाज़िरी से फरियादियों में भारी आक्रोश देखने को मिला। लोगों का कहना था कि जब जनता की समस्याओं को सुनने ही नहीं आना तो इस जनसुनवाई का क्या मतलब?
इतना ही नहीं, मौजूद अपर कलेक्टर ने भी समस्याओं को गंभीरता से सुनने के बजाय उन्हें औपचारिकता में निपटाने की कोशिश की। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कई अधिकारियों ने आवेदन लिए तो सही, लेकिन बिना पढ़े ही ‘रसीद’ देकर फाइलों में दबा दिया।
महीनों तक लटकती रहती हैं शिकायतें
फरियादियों का दर्द यही है कि वे हर मंगलवार को आते हैं, आवेदन देते हैं लेकिन हफ्तों–महीनों बीत जाते हैं और समाधान कहीं दिखाई नहीं देता। फाइलें दफ्तरों में धूल खाती रहती हैं और फरियादी बार-बार चक्कर काटते रहते हैं।
एक ग्रामीण किसान ने गुस्से में कहा –
“हम सुबह चार बजे गाँव से निकलकर यहाँ आते हैं, पूरा दिन बर्बाद होता है। लेकिन अधिकारी हमारी सुनवाई नहीं करते। यह जनसुनवाई नहीं, जनता के साथ धोखा है।”
जनता का भरोसा टूट रहा है
लोगों ने सवाल उठाया है कि अगर कलेक्टर और अफसर ही समस्याओं से मुँह मोड़ लेंगे तो आमजन को न्याय कौन देगा? ग्रामीणों का कहना है कि हर हफ्ते कलेक्ट्रेट बुलाना और फिर खाली हाथ भेज देना जनता के साथ क्रूर मज़ाक है।
आक्रोशित ग्रामीणों ने कहा –
“सरकार कहती है कि जनता की सुनवाई होगी, लेकिन यहाँ सुनवाई नहीं हो रही, सिर्फ़ दिखावा हो रहा है। जब तक अफसर ईमानदारी से काम नहीं करेंगे, जनता का भरोसा सरकार और प्रशासन दोनों से उठ जाएगा।
जवाबदेही पर उठे सवाल
स्थानीय बुद्धिजीवियों ने भी चिंता जताई है कि यदि जनसुनवाई महज़ औपचारिकता बनकर रह गई तो लोग प्रशासन पर से विश्वास खो देंगे। यह विश्वास टूटने पर जनता न्याय पाने के लिए विरोध का रास्ता भी अपना सकती है।
👉 अब सवाल यह है कि क्या जनसुनवाई जनता के लिए है या फिर सिर्फ़ सरकारी रिकॉर्ड भरने का साधन?
👉 कब तक फरियादी अपने हक के लिए दर-दर भटकते रहेंगे और अधिकारी फाइलों में शिकायतें दबाते रहेंगे?
👉 क्या मऊगंज में “जनसुनवाई” का नाम बदलकर “जन-ठगाई” रख देना चाहिए?