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भारी डिमांड के बाद भी पाठकों तक नहीं पहुंच रही गीता प्रेस की किताबें, जानें वजह
संवादाता (उ.प्र.) गोरखपुर:- गीता प्रेस गोरखपुर की अमूल्य धरोहर हैं, गीता प्रेस कम लागत में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए जाना जाता है,।
जो अपने एक सदी के सफर को पूरा कर 101वें वर्ष में चल रहा है. इस दौरान गीता प्रेस गोरखपुर कई कालखण्डों का गवाह भी बना है. गीता प्रेस की स्थापना 1923 में किराए के भवन में सेठ जयदयाल गोयणका ने की थी , विश्व विख्यात गृहस्थ संत भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार के गीता प्रेस से जुड़ने और कल्याण पत्रिका का प्रकाशन शुरू होने के साथ ही इसकी ख्याति बढ़ती गई ।
गीता प्रेस गोरखपुर कुल पच्चीस हजार स्क्वायर फीट के एरिया में फैला हुआ है ।
समय के साथ-साथ तकनीक भी बदलती गई और मॉर्डन युग से कदमताल मिलाते हुए एक के बाद एक नयी मशीन गीता प्रेस खरीदता गया ।
गौरतलब है कि स्थापना काल से अब तक 93 करोड़ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन गीता प्रेस कर चुका है ।
अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की तिथि घोषित होने से लेकर प्राण प्रतिष्ठा के दौरान और उसके बाद भी धार्मिक पुस्तकों की डिमांड बढ़ती जा रही है ।
प्रेस में हो रही जगह की कमी
अयोध्या में रामलाल के विराजमान होने के डेढ़ महीने बाद भी आलम यही है ,गीता प्रेस में प्रकाशित होने वाली धार्मिक पुस्तकों जैसे रामचरितमानस, रामांक, अयोध्या माहात्म्य, अयोध्या दर्शन, गीता दयनंदानी, चित्रमय रामचरितमानस और तमाम पुस्तकों का डिमांड बहुत हद तक बढ़ गया है. ।
इसे पूरा करने में गीता प्रेस असमर्थ है. दरअसल, गीता प्रेस की स्थापना के शुरुआती दौर में 100 टन कागज की छपाई वार्षिक होती थी, जो देश की आजादी के समय 350 टन तक पहुंच चुकी थी ।
छपाई बढ़ाने के लिए जापान से मंगाई गई मशीन
जापान की ‘कमोरी’कंपनी की एक मशीन मंगाई गई है. इसकी कीमत लगभग 9 करोड़ रुपये है।
इस मशीन की खासियत यह है कि 1 घंटे में लगभग 16000 पुस्तकों को एक साथ छाप सकती है. साथ ही इस अत्याधुनिक मशीन से एक साथ चार कलर प्रिंट तैयार किए जा सकते हैं. इससे सचित्र और कलर पुस्तकों को छापने का काम आसान हो जाएगा ।
बेंगलुरु से एक मशीन भी मंगाई गई है, जो एक घंटे में एक साथ सैकड़ों पुस्तकें बाइंडिंग के साथ छाप सकती है, लेकिन अभी उसका इंस्टालेशन चल रहा है.
गीता प्रेस प्रतिदिन 70,000 से अधिक पुस्तकें तैयार करके पाठकों को उपलब्ध करा रहा है. अब तक कुल 93 करोड़ पुस्तकों का प्रकाशन गीता प्रेस कर चुका है ।
गीता प्रेस हर महीने 600 टन पेपर कंज्यूम करता है, इसके बावजूद मांग के अनुरूप पाठकों तक गीता प्रेस किताब नहीं पहुंचा पा रहा है. इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि गीता प्रेस की डिमांड कितनी ज्यादा है और आखिर क्या कारण है कि प्रेस पाठकों की डिमांड पूरी नहीं कर पा रहा है।
जमीन के लिए मांगी है सरकार से मदद की गुहार
गीता प्रेस गोरखपुर अभी 25 हजार स्क्वायर फीट में फैला हुआ है. लेकिन, पाठकों की बढ़ती डिमांड को देखते हुए अगले 100 साल को ध्यान में रखकर कुल 25 एकड़ की जमीन की आवश्यकता पड़ेगी ।
लेकिन गीता प्रेस के ट्रस्टी के अनुसार वो कीमत देकर बहुत ज्यादा जमीन अफोर्ड नहीं कर सकते हैं ,इस बाबत गीता प्रेस ने गीडा प्रशासन समेत संस्कृति मंत्रालय को भी पत्र लिखा है, लेकिन अभी तक गीता प्रेस को इंतजार है.
वर्तमान में एक साल में लगभग 6500 टन कागज प्रिंट हो रहे हैं. ऐसे में डिमांड को देखते हुए अगले 100 साल में कुल 20000 टन की छपाई बढ़ सकती है. लिहाजा छपाई से लेकर रख रखाव तक के लिए एक विशालकाय जगह की आवश्यकता पड़ेगी.
ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं किताबें गीता प्रेस ने डिजिटलाइजेशन का उपयोग करते हुए अपनी वेबसाइट पर तमाम धार्मिक पुस्तकों को www.geetapress.org पर अपलोड कर दिया है.।
इस लिंक पर जाकर पाठक निःशुल्क पढ़ सकते है ,रामलला प्राण प्रतिष्ठा के दौरान देश ही नहीं बल्कि विदेशों में रह रहे सनातनी उपासकों ने गीता प्रेस की पुस्तकों को ऑनलाइन पढ़ा. गीता प्रेस ने जो आंकड़ें प्रस्तुत किए हैं, ।
उसमें कुल 30 लाख लोगों ने 17 जनवरी से लेकर फरवरी महीने के अंत तक रामचरितमानस जैसी तमाम उपयोगी पुस्तकों को पढ़ सकते हैं ।