आजम खान की पत्नी ने कहा अब तो समाजवादी पार्टी से भी उम्मीद नहीं,
Akhilesh Yadav on Azam Khan : आजम खान और समाजवादी पार्टी के रिश्तों में आई तल्ख़ी अब किसी से छुपी नहीं है। तंजीन फातिमा का बयान — “मुझे समाजवादी पार्टी से कोई उम्मीद नहीं” — न सिर्फ़ एक पीड़ित पत्नी का दर्द है, बल्कि एक राजनीतिक संकेत भी है। यह बयान सपा के शीर्ष नेतृत्व पर सीधा सवाल खड़ा करता है।
आजम खान एवं उनकी पत्नी की पीड़ा कैसे कम हो सकती है?
1. राजनीतिक सहानुभूति से नहीं, ठोस समर्थन से:
आजम खान लंबे समय तक समाजवादी पार्टी का मुस्लिम चेहरा रहे हैं। लेकिन अब जब वह संकट में हैं, उन्हें सिर्फ़ शब्दों की नहीं, राजनीतिक और कानूनी सहयोग की ज़रूरत है। सपा को चाहिए कि वह खुलकर यह बताए कि उन्होंने आजम के लिए क्या किया और आगे क्या करेंगे।
2. न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग:
अखिलेश यादव ने जो कहा, कि तीन ही रास्ते बचे हैं — सरकार बदलो, अदालत से इंसाफ लो, या फिर ऊपर वाले से उम्मीद रखो — ये एक प्रकार की राजनीतिक असहायता भी दर्शाता है। यदि सपा आजम के लिए ईमानदार प्रयास कर रही है, तो उसे कानूनी लड़ाई में सक्रिय रूप से साथ देना चाहिए।
3. पार्टी के भीतर संवाद और संतुलन:
आजम खान को यह भी पीड़ा है कि अब मुस्लिम नेतृत्व के रूप में जिया उर रहमान बर्क, इकरा हसन या मसूद जैसे लोगों को प्राथमिकता मिल रही है। सपा को यह संतुलन बनाना होगा ताकि पुराने सिपाही खुद को बेकार महसूस न करें।
4. कांग्रेस या अन्य विकल्प?
इमरान मसूद जैसे नेता आजम खान को कांग्रेस के करीब लाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि आजम और उनके समर्थकों को सपा से लगातार उपेक्षा महसूस होती रही, तो यह ‘शिफ्ट’ राजनीतिक रूप से अहम साबित हो सकता है।
क्या तंजीन फातिमा का बयान ‘राजनीतिक संकेत’ है?
बिलकुल। ये सिर्फ़ भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं है। यह एक संदेश है — सपा नेतृत्व को, और शायद अन्य पार्टियों को भी। यह संकेत करता है कि आजम खान का खेमा खुद को राजनीतिक रूप से अलग-थलग महसूस कर रहा है और अब वह नए विकल्प तलाश सकता है।
निचोड़:
सपा को चाहिए कि वो स्पष्ट और पारदर्शी तरीके से बताए कि उसने आजम खान के लिए क्या किया है.आजम की अनदेखी केवल सपा की नहीं, समूचे उत्तर भारतीय मुस्लिम मतदाता वर्ग में असंतोष को जन्म दे सकती है।
अखिलेश यादव के “तीन रास्तों” वाले बयान से पार्टी नेतृत्व की सीमाएं उजागर होती हैं।
अगर सपा इस असंतोष को नहीं संभालती, तो यह न सिर्फ़ एक वरिष्ठ नेता को पार्टी से दूर कर सकता है, बल्कि सपा के मुस्लिम वोट बैंक में भी सेंध लगा सकता है।
