किशोरों से लेकर बुजुर्गों तक, हर उम्र में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति — मानसिक अवसाद, पारिवारिक कलह और आर्थिक तंगी बने प्रमुख कारण
ब्यूरो रवि शंकर गुप्ता
जिंदगी से जंग हारते लोग — चार दिनों में 12 आत्महत्याओं से दहला जिला
सादिका पवित्र – प्रयागराज। – समाज के सामने अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर लोग ज़िंदगी से इतनी जल्दी हार क्यों मान रहे हैं? पिछले चार दिनों में जिलेभर में एक दर्जन लोगों ने आत्महत्या कर ली, जिनमें अधिकांश किशोर और युवा हैं। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है बल्कि समाज के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर सवाल भी खड़ा करता है।
छोटी-छोटी बातों पर जिंदगी खत्म करने का बड़ा कदम
बीते शुक्रवार को करेली के जीटीबी नगर निवासी 15 वर्षीय इमरान ने मां की डांट से नाराज़ होकर फांसी लगा ली। वहीं, करछना के जगौती गांव की 23 वर्षीय नंदिनी पटेल ने भी पारिवारिक तनाव के चलते अपनी जान दे दी।

जेल के भीतर से गांव तक फैली मौत की छाया-
शनिवार को केंद्रीय कारागार नैनी में बंद 60 वर्षीय कैदी उदयराज लोध ने फांसी लगाकर जीवन समाप्त कर लिया। उसी दिन मऊआइमा की 16 वर्षीय खुशी और कौशांबी की 17 वर्षीय खुशबू ने भी आत्महत्या कर ली। खुशबू कोचिंग जाने का बहाना बनाकर घर से निकली थी, बाद में उसका शव ट्रेन ट्रैक पर मिला।
आर्थिक तंगी और अवसाद के शिकार-
शनिवार की रात कौंधियारा के देवरा डाड़ी गांव के 25 वर्षीय मनीष मिश्रा, जो मुंबई में नौकरी करते थे, ने फांसी लगाई। रविवार को नैनी के इंटर छात्र हर्षित ने परीक्षा में असफलता के कारण पहले हाथ की नसें काटीं, फिर फांसी लगा ली।
करछना के महोरी रीवा गांव के 50 वर्षीय राकेश कुमार ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। वहीं, कैंट क्षेत्र के 57 वर्षीय अजय दुबे ने जहरीला पदार्थ खाकर आत्महत्या की।
पारिवारिक विछोह बना आखिरी वार-
सोमवार को करछना के नरैना गांव निवासी बी.फार्मा छात्र राजीव तिवारी, जो सितंबर में पिता की मौत से मानसिक रूप से टूट चुके थे, ने फांसी लगा ली। इसके अलावा, नैनी के 32 वर्षीय दिलीप पटेल ने पत्नी से कहासुनी के बाद फांसी लगाकर जान दे दी।
समाज के लिए गंभीर संकेत-
लगातार बढ़ती आत्महत्याएं समाज में मानसिक असंतुलन और भावनात्मक दुर्बलता की गहराई को उजागर करती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि लोग तनाव से निपटने की क्षमता खोते जा रहे हैं, जबकि परिवार और समाज में संवाद की कमी स्थिति को और भयावह बना रही है।
अब वक्त आ गया है कि हम आत्महत्या को केवल “समाचार” न मानें — बल्कि इसे एक सामाजिक आपात स्थिति के रूप में स्वीकार करें।
