देवोत्थान एकादशी पर मौज गिरि घाट पर हुआ भव्य कालिंदी महोत्सव, मां यमुना की आरती में उमड़ी भीड़
ब्यूरो – रवि शंकर गुप्ता
तीर्थराज / प्रयागराज। – देवोत्थान एकादशी की पूर्व संध्या पर तीर्थराज प्रयागराज की पावन धरती शुक्रवार की रात फिर से अध्यात्म और आस्था की रौशनी में नहा उठी। जूना अखाड़े के मौज गिरि घाट पर आयोजित “कालिंदी महोत्सव और दीपदान महायज्ञ” में सवा लाख दीपों की रौशनी ने यमुना तट को एक अद्भुत आध्यात्मिक आभा से भर दिया।
संगम की हवा में गूंजते मंत्रोच्चार, दीपों की लौ से थरथराती यमुना की लहरें और आरती की मधुर धुन—सब मिलकर ऐसा दृश्य बना रहे थे, मानो धरती पर देवलोक उतर आया हो।
दीपदान महायज्ञ और कालिंदी महोत्सव का आयोजन श्री दत्तात्रेय सेवा समिति की ओर से जूना अखाड़े के प्रमुख संतों के संरक्षण में किया गया। भव्य कार्यक्रम का शुभारंभ इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जस्टिस शेखर यादव ने दीप प्रज्वलित कर किया, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में न्यायमूर्ति पी.के. गिरी उपस्थित रहे। इस अवसर पर नागा तपस्वी महंत शिवानंद गिरि महाराज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा—
दीपदान केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, यह प्रकाश के माध्यम से अंधकार पर विजय और लोक कल्याण की भावना का प्रतीक है। बीते दस वर्षों से हम यह आयोजन समाज में शांति, प्रेम और सद्भाव के प्रसार के लिए करते आ रहे हैं।
यमुना तट पर उमड़ी भक्ति की बयार-
संध्या होते ही जैसे ही मां यमुना की आरती आरंभ हुई, मौज गिरि घाट का हर कोना “जय मां यमुना” के जयघोष से गूंज उठा। सैकड़ों संत-महात्मा, नागा संन्यासी और हजारों श्रद्धालु दीप लेकर घाट की सीढ़ियों पर पंक्तिबद्ध होकर खड़े हो गए।
दीपदान के लिए यमुना में एक दर्जन से अधिक नावें सजाई गईं, जिनसे दीप प्रवाहित किए गए। पलभर में पूरी धारा दीपों से भर उठी। दूधिया रोशनी में चमकती यमुना का दृश्य देखकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।
हर ओर कैमरों की फ्लैश लाइटें, भक्ति गीतों की गूंज और दीपों की जगमगाहट ने माहौल को और भी अलौकिक बना दिया। कई श्रद्धालु अपने परिवार के साथ यहां पहुंचे थे, जिन्होंने आरती के बाद दीप जलाकर सुख, समृद्धि और शांति की कामना की।
देवोत्थान एकादशी का धार्मिक महत्व-
देवोत्थान एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु चार माह की निद्रा के बाद जाग्रत होते हैं और इसी के साथ चातुर्मास का समापन होता है।
संतों ने प्रवचन के दौरान बताया कि इस दिन से ही विवाह, गृहप्रवेश और अन्य शुभ कार्यों की शुरुआत मानी जाती है। इसलिए देवोत्थान एकादशी का दिन पुनर्जागरण और नव आरंभ का प्रतीक है।
प्रशासनिक और सुरक्षा व्यवस्था –
इतने विशाल आयोजन को देखते हुए प्रयागराज प्रशासन और पुलिस ने घाटों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे। स्थानीय थानों के पुलिसकर्मी, पीएसी बल और गोताखोर लगातार तैनात रहे। किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए बचाव दल पूरी तरह सतर्क था।
प्रशासनिक अधिकारियों ने घाट पर साफ-सफाई, प्रकाश व्यवस्था और भीड़ नियंत्रण का बखूबी प्रबंधन किया। श्रद्धालुओं ने भी इस अनुशासित व्यवस्था की सराहना की
प्रकाश और भक्ति का संगम-
जब सवा लाख दीप एक साथ प्रज्वलित हुए तो पूरा माहौल एक आध्यात्मिक सौंदर्य में डूब गया। यमुना की लहरों पर तैरते दीप ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे आकाश के सितारे नदी में उतर आए हों।
संतों ने सामूहिक प्रार्थना में विश्व शांति, समृद्धि और मानवता के कल्याण की कामना की।
दीपदान की इस परंपरा ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि जहां प्रकाश होता है, वहां अंधकार टिक नहीं सकता। प्रयागराज का यह आलोक पर्व न केवल भक्ति का प्रतीक बना, बल्कि लोगों के हृदय में आशा, सद्भाव और एकता का दीप भी जला गया।
