खेत बर्बाद – किसान बोले: “कालाबाजारी में दोगुने दाम पर यूरिया खरीदने को मजबूर, खेत बर्बादी की कगार पर –, प्रशासन की चुप्पी पर सवाल जिम्मेदार मौन
ब्यूरो सुरेश चंद्र मिश्रा
उरूवा ब्लॉक (प्रयागराज)।
खेती-किसानी के इस मौसम में उरूवा ब्लॉक के किसान सबसे बड़े संकट से जूझ रहे हैं। पूरे तीन माह से ब्लॉक की सोसायटी पर यूरिया खाद की आपूर्ति ठप है। किसानों का आरोप है कि सोसायटी सचिव के. एन. पाठक ने खाद वितरण में गड़बड़ी करते हुए न सिर्फ पैसा हजम कर लिया, बल्कि पूरी व्यवस्था को ठप कर दिया।

परिणाम यह है कि सैकड़ों किसान रोज़ सोसायटी के चक्कर काटने के बावजूद खाली हाथ लौट रहे हैं। खेत सूखने की कगार पर हैं और मेहनत से बोई गई फसलें खतरे में पड़ गई हैं।
कालाबाजारी का बोलबाला – किसान लुट रहे दोगुनी कीमत पर
सोसायटी से किसानों को जहाँ यूरिया की बोरी 270 रुपये में मिलनी चाहिए, वहीं खुले बाज़ार में यह 450 से 550 रुपये तक बिक रही है। मजबूरी में किसान कालाबाजारी करने वालों के हाथों लुट रहे हैं।
इससे उनकी जेब तो खाली हो रही है, साथ ही खेती की लागत कई गुना बढ़ गई है। किसान नेताओं का कहना है कि यही खेल सचिव और अफसरों की मिलीभगत से चल रहा है।
प्रशासन की चुप्पी पर गंभीर सवाल
किसानों ने बार-बार तहसील और ब्लॉक स्तर के अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन न तो जांच हुई और न ही खाद की आपूर्ति शुरू हुई। किसानों का आरोप है कि यह लापरवाही नहीं बल्कि सीधी मिलीभगत है।
सवाल यह उठ रहा है कि –
जब तीन माह से खाद नहीं मिल रही तो अधिकारी हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे हैं?
किसानों से वसूला गया पैसा आखिर गया कहां?
सचिव के. एन. पाठक पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
किसानों की पीड़ा – “खेत बर्बाद हो रहे हैं”
रामसजीवन यादव (किसान, उरूवा ब्लॉक):
“तीन माह से सोसायटी के चक्कर काट रहे हैं। जेब खाली हो गई, लेकिन खाद नहीं मिली। अब मजबूरी में दोगुने दाम पर खरीदना पड़ रहा है।”
गुड्डू पटेल (किसान, बगल गांव):
“सचिव और अफसर मिले हुए हैं। हमारे खेत सूख रहे हैं और अधिकारी आंख मूंदकर बैठे हैं।”
सरकार की नीतियों पर सवाल
किसानों का कहना है कि सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि खाद जैसी बुनियादी ज़रूरत भी समय पर नहीं दी जा रही।
किसानों का स्पष्ट कहना है कि –
जब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं होगी,
गबन की जांच पूरी नहीं होगी,
और खाद की सप्लाई बहाल नहीं होगी,
तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
उरूवा ब्लॉक में खाद संकट सिर्फ खेती-किसानी का नहीं बल्कि किसानों के भविष्य और उनकी रोज़ी-रोटी का सवाल बन चुका है। जवाबदेही तय किए बिना और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई किए बिना यह संकट खत्म होना मुश्किल है।
