
मुख्यमंत्री के सख्त आदेशों के बाद भी लालगंज में नहीं थम रही कोटेदार की दबंगई, राशनकार्ड धारकों को दर-दर भटकना पड़ रहा – ग्रामीणों का आरोप: “जाति देखकर तय होता है राशन”
संवाददाता
📍 मिर्जापुर (लालगंज) – प्रदेश सरकार जनता को सस्ते राशन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए लगातार सख्त कदम उठा रही है। मुख्यमंत्री तक कई बार स्पष्ट निर्देश दे चुके हैं कि कोई भी पात्र परिवार राशन से वंचित न हो। लेकिन लालगंज ब्लॉक क्षेत्र की ग्राम पंचायत रामपुर वासिद अली में कोटेदार मोहम्मद इलियासुद्दीन सरकार की मंशा को ठेंगा दिखाते नजर आ रहे हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि कोटेदार खुलेआम सिस्टम की खराबी और केवाईसी अपडेट न होने का बहाना बनाकर पात्र कार्डधारकों को राशन से वंचित कर रहे हैं। इतना ही नहीं, इलाक़े में जातिगत समीकरण खड़ा कर दिया गया है – किसे राशन मिलेगा और किसे नहीं, यह जाति देखकर तय किया जा रहा है ।
कोटेदार की मनमानी से गांव में जनता परेशान
राशन न मिलने से रामपुर वासिद अली पंचायत के गरीब ग्रामीण परेशान और नाराज हैं। उनका कहना है कि जब भी कोटेदार से राशन मांगने जाते हैं तो वह कभी सिस्टम की गड़बड़ी तो कभी बायोमेट्रिक न चलने का बहाना बनाकर टरका देता है। वहीं कुछ खास जाति और नजदीकी लोगों को आसानी से राशन दे दिया जाता है।
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि कोटेदार राशनकार्ड धारकों को खुलेआम धमकी देता है कि “अगर ज्यादा बोलोगे तो तुम्हारा नाम राशनकार्ड से कटवा दिया जाएगा।” ऐसी दबंगई के आगे गरीब जनता लाचार होकर चुप्पी साध लेते हैं।
प्रदेश के मुख्यमंत्री के आदेश ठंडे बस्ते में!
प्रदेश स्तर पर मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए आदेश और अफसरों की सख्ती के बावजूद जमीनी स्तर पर कोटेदारों की मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही। सवाल यह है कि अगर मुख्यमंत्री के निर्देशों को ही धत्ता बता दिया जा रहा है तो फिर आखिर जिम्मेदार कौन है? क्या प्रशासन आंख मूंदकर बैठा है?
कोटेदार से नाराज़ ग्रामीणों जनता का आरोप
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कोटेदार मोहम्मद इलियासुद्दीन ने राशन वितरण को पूरी तरह अपनी मनमर्जी और जातिगत समीकरण से जोड़ रखा है। यही कारण है कि जिन गरीब परिवारों को वास्तव में राशन की सबसे अधिक जरूरत है, वे खाली हाथ लौट रहे हैं।
लालगंज के ग्रामीणों ने यह भी कहा कि “कोटेदार जनता को सिर्फ एक किलो गल्ले पर रोक देता है, जबकि हक के हिसाब से पूरा राशन मिलना चाहिए। केवाईसी अपडेट न होने का बहाना बनाकर गरीबों को उनके हक से वंचित करना कहां तक न्यायसंगत है? आखिर कब तक जनता के हक पर फन मारकर जातिगत समीकरण और दुर्व्यवहार के जरिए जनता का अपमान किया जाएगा?
❓ सवालों के घेरे में प्रशासन
अब बड़ा सवाल यह है कि जब सरकार खुद सख्ती बरत रही है, तो फिर स्थानीय स्तर पर अधिकारियों की चुप्पी क्यों है? क्या प्रशासन को कोटेदार की इन करतूतों की भनक नहीं? या फिर शिकायतों के बावजूद कार्रवाई से बचा जा रहा है?
👉 यह मामला सिर्फ एक पंचायत का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा करता है। अगर जिम्मेदार अधिकारी समय रहते कार्रवाई नहीं करते तो जनता का भरोसा सरकार की मंशा पर से उठना तय है।