
सिंगरौली में जागी प्रशासनिक भरोसे की लौ! कलेक्टर की कुर्सी पर आम आदमी का सम्मान
आयोजन “दो”और संदेश एक- कि सिंगरौली बदल रहा है
एनर्जी कैपिटल कहलाने वाला सिंगरौली जिला लंबे समय से विस्थापन, प्रदूषण, शोषण और बेरोजगारी की चपेट में कराह रहा था। लेकिन इस बार कुछ अलग था —पहले मंगलवार को कलेक्टर गौरव बैनल की “जनसुनवाई” और फिर ठीक बृहस्पतिवार को “रोजगार मेला” — यह दो घटनाएँ सामान्य प्रशासनिक आयोजन भर नहीं थीं। ये उस जिले के धड़कते दिल की धड़कनें थीं, जिसने बरसों से सरकारी आश्वासनों की धूल फांकी, और अब पहली बार किसी “बदलाव के संकेत” महसूस किए। लोगों की आंखों में फिर भरोसे की हल्की चमक दिखाई दी।
उम्मीदों की भीड़: प्रशासनिक औपचारिकता से आगे
सिंगरौली, जो कभी “एनर्जी कैपिटल” कहलाने पर गर्व करता था, अब विस्थापन, प्रदूषण और बेरोजगारी की त्रासदी से जूझता जिला बन चुका है। लेकिन इस बार कुछ बदला-बदला नजर आया। मंगलवार की जनसुनवाई में 500 से अधिक आवेदनपत्रों पर स्वयं कलेक्टर गौरव बैनल ने संज्ञान लिया। लोगों की भीड़ केवल अपनी समस्या सुनाने नहीं आई थी, वे यह देखने आए थे कि “क्या इस बार सच में कोई सुन रहा है? और जब बृहस्पतिवार को रोजगार मेले के रूप में “युवा संगम” सजीव हुआ, तो भीड़ ने साफ कर दिया कि प्रशासन के प्रति भरोसा बाकी है। 13 कंपनियाँ, 469 युवाओं का प्रारंभिक चयन, 17 महिलाएं रोजगार लाभ से जुड़ीं और 40 युवाओं ने करियर काउंसलिंग से नया रास्ता पाया।
बैनल स्टाइल— सुनना, समझना और हल निकालना
कलेक्टर गौरव बैनल ने अपने तेवर और तौर-तरीकों से साबित किया है कि प्रशासनिक कार्य केवल फाइलों का नहीं, भावनाओं का भी विज्ञान है।उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया —जनसुनवाई में आने वाला हर आवेदन सिर्फ़ कागज़ नहीं, एक उम्मीद है — इसे गंभीरता से लो। क्यों कि यह सुनवाई महज़ रस्म नहीं, जिम्मेदारी है। उन्होंने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया कि हर आवेदन को गंभीरता से लो, हर नागरिक को जवाब दो, हर शिकायत का समाधान करो। उनकी यह बात लोगों के मन में गूंजी। वर्षों बाद जनता को लगा कि कोई सुन तो रहा है, और शायद कर भी रहा है।
इतिहास की पुनरावृत्ति:- नरहरि के बाद बैनल
सिंगरौली ने इससे पहले ऐसा जनसैलाब बर्ष 2009 से 11के बीच में कलेक्टर पी. नरहरि के कार्यकाल में देखा था। तब भी बेरोजगार युवाओं ने बैढ़न स्टेडियम को ठसाठस भर दिया था। उसके बाद यह जोश, वह भरोसा कभी दोबारा नहीं लौटा —लेकिन अब, 15-16 साल बाद, उसी भरोसे की लौ फिर से जल उठी है —और यह लौ जलाने वाले हैं गौरव बैनल। लोग अब भी शोषण, विस्थापन और प्रदूषण की मार झेल रहे हैं — पर इस बार उनके चेहरों पर “शिकायत” से ज्यादा “आशा” झलक रही है। एक बुजुर्ग ने कहा भी कि …पहली बार देखा कि “एक कलेक्टर” अपने ठीक …बगल की वीआईपी रिवॉल्विंग चेयर में आम- आदमी को “सम्मान” के साथ बैठाकर उसकी समस्याओं की सुनवाई और निराकरण कर रहा है। इस बार लग रहा है कि कलेक्टर साहब हमारी सुन रहे हैं, हमें टाल नहीं रहे। जनता का विश्वास एक बार फिर लौट आया है। अब जिम्मेदारी प्रशासन की है कि इस भरोसे को ब्याज सहित लौटाए। कलेक्टर गौरव बैनल के दो दिनों के ये आयोजन एक संकेत हैं कि अगर इच्छाशक्ति, संवेदना और समर्पण साथ हों, तो सिंगरौली जैसा औद्योगिक जिला भी केवल मशीनों का नहीं, मानवता का भी केंद्र बन सकता है।
लेकिन! चक्रव्यूह से निकलने की राह आसान नहीं…
भरोसा जीतना एक बात है, भरोसा बनाए रखना उससे कहीं कठिन। जनता का मन अब उम्मीद और संशय के बीच झूल रहा है। लोगों ने भरोसा तो जताया है, पर साथ ही उनके मन में एक डर भी है —कहीं यह जोश फिर से कुछ महीनों की खबर बनकर फीका न पड़ जाए। क्यों कि औद्योगिक, राजनैतिक दबाव के साथ -साथ लालच का चक्रव्यूह “सिंगरौली” को इस कदर जकडे हुए है..कि इससे निकल पाना मुश्किल ही होता है। अब बैनल साहब पर यह नैतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी है कि वे इस जनविश्वास की लौ को ठंडी न पड़ने दें।क्योंकि जनता की याददाश्त कमजोर नहीं —वो देखती भी है, और परखती भी है। यह शुरुआत तभी अर्थपूर्ण होगी जब इसका निरंतर परिणाम जनता तक पहुँचेगा।सिंगरौली की जनता ने वर्षों बाद अपने प्रशासक पर भरोसा किया है — अब यह कलेक्टर गौरव बैनल के नेतृत्व की असली परीक्षा है। और शायद उनके लिए जनता के भरोसे को ज़िंदा रखना अब सबसे बड़ी प्रशासनिक चुनौती भी है।