जिले में मेडिकल संचालकों का आतंक, खुले में फेंका जा रहा बायोमेडिकल वेस्ट, कार्रवाई शून्य
सिंगरौली जिले के स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और उदासीनता ने मेडिकल संचालकों के हौसले इस कदर बुलंद कर दिए हैं कि वे खुलेआम नियम-कायदों को ठेंगा दिखाकर मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। ताजा मामला शासन शिवपहरी में संचालित मेडिकल स्टोर का है, जो अंग्रेजी और आयुर्वेदिक दवाइयों का एक प्रमुख प्रतिष्ठान है। लेकिन यहां दवाइयां बेचने तक ही सीमित काम नहीं हो रहा, बल्कि बकायदा हॉस्पिटल जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। मरीजों को दवाइयां सिर्फ डॉक्टर की पर्ची पर बेचने का नियम है, लेकिन इस मेडिकल स्टोर पर संचालक खुद को डॉक्टर समझकर इंजेक्शन लगाने, सुई चढ़ाने और दवाइयां सीधे पिलाने का काम कर रहे हैं। यह स्थिति साफ तौर पर दर्शाती है कि मेडिकल संचालक मरीजों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। मरीजों को बिना योग्य चिकित्सक की देखरेख में दिए जा रहे ये उपचार बड़े हादसों और गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।
खुले में फेंका जा रहा बायोमेडिकल वेस्ट
इतना ही नहीं, मेडिकल से निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट जैसे उपयोग की हुई सुई, सिरिंज, दवाइयों के खाली रैपर और बोतलें को भी खुले में फेंका जा रहा है। यह वेस्ट जहां आम नागरिकों के स्वास्थ्य पर संकट खड़ा कर रहा है, वहीं संक्रमण और महामारी फैलने का बड़ा खतरा बना हुआ है। साफ है कि बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण को लेकर सरकार द्वारा बनाए गए नियमों को पूरी तरह से ताक पर रख दिया गया है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि जिले का स्वास्थ्य विभाग इन गतिविधियों से पूरी तरह वाकिफ होने के बावजूद आंखें मूंदे बैठा है। अधिकारियों की चुप्पी से यह संदेह गहराता जा रहा है कि कहीं स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल संचालकों के बीच गहरी साठगांठ तो नहीं। अन्यथा इतने बड़े पैमाने पर नियमों की धज्जियां उड़ने के बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं हो रही,,,?
सरकार के नियमों की हो रही खुलेआम अवहेलना
मध्य प्रदेश सरकार ने मेडिकल स्टोर संचालित करने के लिए सख्त गाइडलाइन बनाई है। इन गाइडलाइनों के तहत मेडिकल संचालकों को न तो इलाज करने की अनुमति है और न ही बायोमेडिकल वेस्ट को खुले में फेंकने की। लेकिन शासन शिवपहरी में संचालित मेडिकल स्टोर सहित जिले के कई मेडिकल स्टोर इन नियमों को धता बताते हुए बेखौफ मरीजों का जीवन संकट में डाल रहे हैं। जिले के आम नागरिक अब सवाल उठा रहे हैं कि क्या स्वास्थ्य विभाग इस मामले पर गंभीरता दिखाते हुए मेडिकल संचालकों पर कड़ी कार्रवाई करेगा या फिर एक बार फिर इन्हें संरक्षण देने का काम किया जाएगा। लोगों का कहना है कि अगर समय रहते इस पर रोक नहीं लगाई गई तो आने वाले दिनों में इसका खामियाजा पूरे जिले को गंभीर बीमारियों और महामारी के रूप में भुगतना पड़ सकता है। कुल मिलाकर, यह मामला न सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि जिले में मेडिकल संचालक खुलेआम मौत का तांडव मचा रहे हैं और जिम्मेदार अधिकारी आंख मूंदकर बैठे हैं।
