
एनसीएल खड़िया परियोजना कलिंगा कंपनी में श्रमिक शोषण का आरोप, जिला प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
सोनभद्र/शक्तिनगर। एनसीएल खड़िया परियोजना में कार्यरत आउटसोर्सिंग कंपनी कलींगा कमर्शियल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (केसीसीएल) पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। आरटीआई कार्यकर्ता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने महाप्रबंधक, एनसीएल खड़िया को सौंपे शिकायत पत्र में दावा किया कि कंपनी न केवल समय पर और पूरा वेतन नहीं दे रही है, बल्कि श्रम कानूनों एवं संविदा शर्तों का भी खुला उल्लंघन कर रही है।
शिकायत पत्र में कहा गया है कि कंपनी द्वारा Equal Remuneration Act 1976, Payment of Wages Act 1936, Minimum Wages Act 1948 और Industrial Disputes Act 1947 सहित कई श्रम कानूनों की अनदेखी की जा रही है। आरोपों में ‘Form A’ रजिस्टर में हेराफेरी, बिना सूचना सेवाएं समाप्त करना, बायोमेट्रिक उपस्थिति में गड़बड़ी और जातिगत आधार पर पदस्थापन/नियुक्ति शामिल हैं।
श्रमिकों पर दोहरा संकट-नौकरी छिनी, दबंगई और भुखमरी का डर :
कंपनी से हटाए गए कई श्रमिकों ने नाम न छापने की शर्त पर अपनी आपबीती सुनाई। उनका कहना है कि उन्हें जाति देखकर हटाया गया और तरह-तरह के दबाव बनाए जा रहे हैं कि यदि विरोध किया तो “अंजाम अच्छा नहीं होगा।”
एक श्रमिक ने आंसू भरी आंखों से कहा –
“अब घर की रोज़ी-रोटी और बच्चों की पढ़ाई कैसे चलेगी? कुछ स्थानीय दबंग लोग, सिंडिकेट बनाकर कंपनी को गुमराह कर रहे हैं और हम गरीब मजदूरों की पेट पर लात मार रहे हैं। अब हम आंदोलन करें या भूख से मरें? योगी सरकार में क्या यही रामराज्य है? जिला अधिकारी जी को हम मजदूरों पर हो रहे शोषण और अत्याचार क्यों नहीं दिखते?”
खान सुरक्षा महानिदेशालय की जांच में भी खुली पोल :
कुछ दिन पूर्व धनबाद से आए खान सुरक्षा महानिदेशालय अधिकारी द्वारा जांच के दौरान कलींगा कंपनी में कई अनियमितताएं पाई गई थीं, लेकिन सुधार करने के बजाय कंपनी ने उल्टे श्रमिकों का शोषण तेज कर दिया। यदि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की जाए तो कई बड़े भ्रष्टाचार सामने आ सकते हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता की मांगें :
राघवेंद्र प्रताप सिंह ने मांग की है कि:
• पूरे मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच हो।
• दोषी अधिकारियों और स्थानीय दबंग तत्वों पर कानूनी कार्रवाई की जाए।
• हटाए गए श्रमिकों को पुनः बहाल किया जाए।
• बकाया वेतन का तुरंत भुगतान हो।
जिला प्रशासन की चुप्पी पर सवाल :
श्रमिकों और शिकायतकर्ता का कहना है कि मामला गंभीर होने के बावजूद जिला प्रशासन अब तक खामोश है। श्रमिकों का आरोप है कि प्रशासनिक उदासीनता से कंपनी के हौसले बुलंद हैं और श्रमिकों का शोषण चरम पर है।